हम थे हमारे साथ कोई तीसरा ना था
ऐसा हसीं दिन कहीं देखा सुना ना था
आँखों में उस की तैर रहे थे हया के रंग
पलकें उठा के मेरी तरफ देखता ना था
कुछ ऐसे उस की झील सी आँखें थीं हर तरफ
हमको सिवाए डूबने के रास्ता न था
हाथों में देर तक कोई खुश्बू बसी रही
दरवाज़ा-ऐ-चमन था वो, बंद-ऐ-क़बा न था
उसके तो अंग -अंग में जलने लगे दिए
जादू है मेरे हाथ में मुझको पता न था
उसके बदन की लौ से थी कमरे में रौशनी
खिरकी में चाँद, ताक में कोई दिया न था
कल रात वो निगार हुआ ऐसा मुल्तफीत
अक्सों के दरमियान कोई आईना न था
साँसों में थे गुलाब तो होटों पे चांदनी
इन मंज़रों से मैं तो कभी आशना न था
रोया कुछ इस तरह मेरे शीने से लग के वो
ऐसा लगा के जैसे कभी बेवफा ना था
है इश्क एक रोग, मोहब्बत अज़ब है
इक रोज़ ये खराब करेंगे , कहा ना था!
वहां पे हद कोई रहती भी किस तरह
रुकने को कह रहा था मगर रोकता ना था