मंगलवार, अप्रैल 13, 2010

आपके शहर से जी घबराता हैं

आपके शहर में जी घबराता हैं
मगर
मेरी तम्मनाये हैं

मेरे खुरदरे , मैले से हाथों को तेरे हाथों से जोड़कर
साथ माँगने की
टूटते तारों से
मंदिर में बैठे श्याम से

आगन के बगीचे को तेरे साथ
बागवान बनकर
चमन बनाने की
तुलसा को सींचने की

हर बार तेरे आने जाने से पहले उम्मीदों से
घर को
सजाने की,
दिए जलाने की

साथ ख़रीदे हुए कपड़ों, महावर और कुमकुम से
दुल्हन बानाने की
शादी के मंडप में
तेरी मांग भरने की

आपके शहर में जी घबराता हैं
मगर
मेरी तम्मानाएं हैं
विकाश राम

कोई टिप्पणी नहीं: