शनिवार, जून 12, 2010

रोया कुछ इस तरह मेरे सीने से लग के वोह


रोया कुछ इस तरह मेरे  शीने से लग के  वो

हम  थे  हमारे  साथ  कोई  तीसरा  ना था 
ऐसा  हसीं  दिन  कहीं   देखा सुना  ना  था

आँखों  में  उस की  तैर  रहे  थे  हया  के  रंग  
पलकें उठा के  मेरी  तरफ  देखता ना था

कुछ   ऐसे  उस की  झील सी  आँखें  थीं  हर  तरफ
हमको  सिवाए  डूबने  के  रास्ता    था

हाथों  में  देर  तक  कोई खुश्बू  बसी  रही
दरवाज़ा-ऐ-चमन  था  वो, बंद-ऐ-क़बा    था

उसके  तो  अंग -अंग  में  जलने  लगे  दिए
जादू है मेरे  हाथ  में  मुझको  पता    था

उसके  बदन  की  लौ  से थी कमरे  में  रौशनी
खिरकी में  चाँद, ताक  में कोई  दिया    था

कल  रात  वो  निगार  हुआ ऐसा  मुल्तफीत
अक्सों  के  दरमियान कोई  आईना    था

साँसों  में  थे  गुलाब  तो  होटों   पे चांदनी  
इन  मंज़रों से मैं  तो  कभी आशना न  था

रोया कुछ इस तरह मेरे  शीने से लग के  वो
ऐसा  लगा के  जैसे  कभी  बेवफा  ना  था

है  इश्क  एक  रोग, मोहब्बत अज़ब   है 
इक  रोज़  ये  खराब करेंगे , कहा  ना  था!

वहां   पे  हद   कोई   रहती   भी   किस   तरह 
रुकने   को   कह   रहा   था   मगर   रोकता   ना   था 
 (लेखक- अज्ञात-unknown) 

मंगलवार, मई 18, 2010

मगर लोग काफ़िर कहते!

जिन रास्तों से गुजरे 'राम' 

वहाँ झुलसे हुए कई और भी थे!


भीड़ अगर परछाइयों को छोड़ देती
वहाँ गुलशन कई और भी थे!

हर बार अलग अलग नामों से लुटे हम
आज खुद ही लूटेरे बन गए तो किस्से कहते !

हम भी शहीद होते मात्रभूमी के लिए
मगर लोग काफ़िर कहते!

गुरुवार, मई 13, 2010

Mottled Mirror- चितकबरा आइना विकाश राम


चितकबरा आइना हों गया हैं वक़्त के बाद!
हर प्रभात घर की तलाश में फिरता हूँ|

रात में सारा जहां सोने के बाद !
कांपती रूह को चादर में समेट लेता हूँ|

सांझ सव्वेरे मंदिर में जाने के बाद !
पेट की आग में जलने लगता हूँ |

गुर्रा रहे हैं नेता सत्तासीन होने के बाद !
घोटालों की गर्मी से जिस्म बेचैन लिए रहता हूँ |

दंभ टूट गया देशभक्ति का आजादी के बाद !
दंगों से रोज़गार की आस लिए रहता हूँ |