शनिवार, अप्रैल 10, 2010

एक सपना

हे! इश्वर ये कैसा मोहपाश हैं , मैं जिसमे बड़ा चला जा रहा हूँ |

आज सुबह के चारे बजे हैं , मुझे नींद में कोई झिंझोड़ता हैं , पर वहा कोई नहीं नींद बहुत ही गहरी थी , शायद ट्रेन्स के आलावा किसी की आवाज सुनाई नहीं दे रही थी , पर अब मेरी नींद उचट गई, ऐतिहात के तौर पर मैं रोहित के पास गया और पुछा की कही तुने तो नही जगाया था|

इंसानी फितरत को इस भ्रमित स्तिथि में मैंने कई बार देखा हैं, वह अजीब सी तरह मूक बन जाता और ठगे सा रह जाता हैं जब सच मालूम होता की कोई नाजुक डोर से बंधा अपनेपन की बाहों में जकड़ा हुआ सपना था और खो गया

मुझसे मेरी यह मन:स्तिथि देखी नहीं गई और लिखने बैठ गया| बिना किसी परवाह किये की आप क्या समझ ले, या आप मुझे डांटे या फिर मुझे इंस्पायर करे कोई डर या ख़ुशी नहीं हो रही हैं|

मुझे आपका डांटना भी अच्छा लगेगा अगर उसमे अपनेपन की महक होगी, और माफ़ करने की शक्ति और पूजा होगी|

अब सपने में जो करीब 3:57 प्रात: मेरी हड़बड़ी में टूट गया, यह करीब पांच या साड़े पांच का समय यह पहली बार नहीं था मगर आज कुछ ज्यादा ही निकट और सच्चाई के के समीपस्थ था.

आप मुझे नींद में पुकार रही थी मेरे पापा आ रहे हैं, आज अभी ट्रेन से, मुझे कुछ ज्यादा ही गहरी नींद आ रही, मैं उठने की कोशिश कर रहा था उससे पहले ही आप गायब थी|

इस मर्तबा आपने यह लाइन कई बार बोली, फिर कहा मैं उन्हें रेलवे स्टेशन से ले लाऊं,

फिर मैं जागा और चारो तरफ देखा की वाकई में यहाँ कौन इंसान आया था पर यह मेरा सपना था जो अब बिखर चूका था|

मैंने तहकीकात भी की किन्तु यह एक सपना ही था " यह जानकार भी मुझे अद्भूत आश्चर्य हुआ "|

और आपके जाने के बाद लिखने बैठ गया |

अब शकुन सा लग रहा हैं|

शुभ प्रभात!

विकाश राम

एमएनआईटी जयपुर


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