चितकबरा आइना हों गया हैं वक़्त के बाद!
हर प्रभात घर की तलाश में फिरता हूँ|
रात में सारा जहां सोने के बाद !
कांपती रूह को चादर में समेट लेता हूँ|
सांझ सव्वेरे मंदिर में जाने के बाद !
पेट की आग में जलने लगता हूँ |
गुर्रा रहे हैं नेता सत्तासीन होने के बाद !
घोटालों की गर्मी से जिस्म बेचैन लिए रहता हूँ |
दंभ टूट गया देशभक्ति का आजादी के बाद !
दंगों से रोज़गार की आस लिए रहता हूँ |
3 टिप्पणियां:
... बेहद प्रभावशाली है ।
DHANYAWAAD VIKAS JI BLOG PAR ANE AUR AUR MERA HOSLA BADHANE KE LIYE
UMEED HAI AGE BHI MERA HOSLA BADHAYEGE
Bhaskarji
Thanks
Aapka Blogs Bahut Prabhashali Hain
Aur Yahaa Behad Prabhashaali Comments Hain.
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