मंगलवार, अप्रैल 13, 2010

कैद हैं जिंदगी

कैद हैं
जिन्दगी
जून में लू की एवज में घर में
दंगों में अस्मत बचाने की जुगत में

इंसान की पीड़ा एवं हवस
भारी कनस्तर सी
और रात में
तीक्ष्ण चमक वाली लाइटे से
प्रकृति को कैद करने की फिराक में

परन्तु प्रकृति फिर भी कर रही थी
प्रायश्चित,
रात के होने पर
और कोशिश हैं भोर किरण से बोझिल
आकाश को फिर से दीप्तिमान करने की
तरफ अग्रसर,

अब प्रकृति लेगी
प्रतिशोध
अनगिनत युद्धों
अनगिनत सरहदों
का सुनामी के रूप में

अब पटाक्षेप तो करना ही होगा
द्वंद्ध का
प्रकृति को पूजने का
ख्याल मानव हृद्रय में कब उठेगा
अब गर्मियों की बेचैन रातों
फासलों को पाटना हैं
प्रभात को बचाने के लिए|

विकाश राम

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