कवि
भूलवश,
कवि स्वर्ग में पहुँच जाता है,
विचारों में वह इतना खोया हुआ है,
कि स्वर्ग की खूबसूरतियों की ओर
आँख तक उठाकर नहीं देखता।
स्वर्ग की हर अप्सरा उसे देखती,
और कहती है कि तू बड़ा विचित्र प्राणी है,
न तू शराब पीता है!
न तू नृत्य देखता है!
न मेरी ओर देखता है!
इस पर कवि उत्तर देता है,
कि मेरा मन स्वर्ग में नहीं लगता!
आकांक्षा की कसक मुझे कहीं चैन नहीं लेने देती।
जब मैं किसी रूपवान को देखता हूँ,
जो बजाय इसके कि,
मैं उसके रूप की सराहना करूँ,
या उससे आनन्दित होऊँ
मेरे मन में तुरन्त यह इच्छा उत्पन्न हो जाती है,
काश मैंने आपसे अधिक रूपवान,
को देखा होता।
विकाश ‘राम’
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