मंगलवार, मई 18, 2010

मगर लोग काफ़िर कहते!

जिन रास्तों से गुजरे 'राम' 

वहाँ झुलसे हुए कई और भी थे!


भीड़ अगर परछाइयों को छोड़ देती
वहाँ गुलशन कई और भी थे!

हर बार अलग अलग नामों से लुटे हम
आज खुद ही लूटेरे बन गए तो किस्से कहते !

हम भी शहीद होते मात्रभूमी के लिए
मगर लोग काफ़िर कहते!

गुरुवार, मई 13, 2010

Mottled Mirror- चितकबरा आइना विकाश राम


चितकबरा आइना हों गया हैं वक़्त के बाद!
हर प्रभात घर की तलाश में फिरता हूँ|

रात में सारा जहां सोने के बाद !
कांपती रूह को चादर में समेट लेता हूँ|

सांझ सव्वेरे मंदिर में जाने के बाद !
पेट की आग में जलने लगता हूँ |

गुर्रा रहे हैं नेता सत्तासीन होने के बाद !
घोटालों की गर्मी से जिस्म बेचैन लिए रहता हूँ |

दंभ टूट गया देशभक्ति का आजादी के बाद !
दंगों से रोज़गार की आस लिए रहता हूँ |

गुरुवार, मई 06, 2010

सौदागर

इस मौज से उस मौज को जोड़कर बना डाली इतनी तरन्नुम
और हम बेचते रहे सरे राह
अफसाने लिखे जायेगें फकत एक शिकायत के साथ
हम सौदागर जो थे