तुमने शीशे में केवल -
अपना चेहरा ही देखा होगा
या शायद पूरी काया भी
पर तुम में मैंने जो देखा
वह तुम्हें शीशे में नहीं
मुझी में देख मिलेगा
उसका साक्षी वह दर्पण नहीं
यह दर्पण हैं
(पुरुष की सापेक्षता में नारी की सार्थक पहचान और काम-वासना से मीलों ऊपर उठकर जीवन में नारी की सार्थकता की परिभाषा)
(किताब - तुम्हारा दर्पण मैं )
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें