मेरा सफरनामा
21 बसंत......... और मैं
रविवार, फ़रवरी 27, 2011
शनिवार, जून 12, 2010
रोया कुछ इस तरह मेरे सीने से लग के वोह
रोया कुछ इस तरह मेरे शीने से लग के वो
हम थे हमारे साथ कोई तीसरा ना था
ऐसा हसीं दिन कहीं देखा सुना ना था
आँखों में उस की तैर रहे थे हया के रंग
पलकें उठा के मेरी तरफ देखता ना था
कुछ ऐसे उस की झील सी आँखें थीं हर तरफ
हमको सिवाए डूबने के रास्ता न था
हाथों में देर तक कोई खुश्बू बसी रही
दरवाज़ा-ऐ-चमन था वो, बंद-ऐ-क़बा न था
उसके तो अंग -अंग में जलने लगे दिए
जादू है मेरे हाथ में मुझको पता न था
उसके बदन की लौ से थी कमरे में रौशनी
खिरकी में चाँद, ताक में कोई दिया न था
कल रात वो निगार हुआ ऐसा मुल्तफीत
अक्सों के दरमियान कोई आईना न था
साँसों में थे गुलाब तो होटों पे चांदनी
इन मंज़रों से मैं तो कभी आशना न था
रोया कुछ इस तरह मेरे शीने से लग के वो
ऐसा लगा के जैसे कभी बेवफा ना था
है इश्क एक रोग, मोहब्बत अज़ब है
इक रोज़ ये खराब करेंगे , कहा ना था!
वहां पे हद कोई रहती भी किस तरह
रुकने को कह रहा था मगर रोकता ना था
सोमवार, मई 24, 2010
मंगलवार, मई 18, 2010
मगर लोग काफ़िर कहते!
जिन रास्तों से गुजरे 'राम'
वहाँ झुलसे हुए कई और भी थे!
भीड़ अगर परछाइयों को छोड़ देती
वहाँ गुलशन कई और भी थे!
वहाँ गुलशन कई और भी थे!
हर बार अलग अलग नामों से लुटे हम
आज खुद ही लूटेरे बन गए तो किस्से कहते !
हम भी शहीद होते मात्रभूमी के लिए
मगर लोग काफ़िर कहते!
आज खुद ही लूटेरे बन गए तो किस्से कहते !
हम भी शहीद होते मात्रभूमी के लिए
मगर लोग काफ़िर कहते!
गुरुवार, मई 13, 2010
Mottled Mirror- चितकबरा आइना विकाश राम
चितकबरा आइना हों गया हैं वक़्त के बाद!
हर प्रभात घर की तलाश में फिरता हूँ|
रात में सारा जहां सोने के बाद !
कांपती रूह को चादर में समेट लेता हूँ|
सांझ सव्वेरे मंदिर में जाने के बाद !
पेट की आग में जलने लगता हूँ |
गुर्रा रहे हैं नेता सत्तासीन होने के बाद !
घोटालों की गर्मी से जिस्म बेचैन लिए रहता हूँ |
दंभ टूट गया देशभक्ति का आजादी के बाद !
दंगों से रोज़गार की आस लिए रहता हूँ |
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